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चेक बाउंस वालो के लिए Supreme Court का बड़ा फैसला, इन लोगों को नहीं ठहरा सकते दोषी

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Supreme Court ने चेक बाउंस के मामलों में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को केवल इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि वह किसी फर्म का पार्टनर था या उसने लोन के लिए गारंटर साइन किया था।

कोर्ट का ये फैसला एनआई एक्ट (Negotiable Instrument Act) की धारा 141 के तहत लिया गया, जिसमें कहा गया कि सिर्फ साझेदारी अधिनियम के तहत व्यक्ति का नाम जुड़ा होना पर्याप्त नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक किसी कंपनी या फर्म ने खुद से कोई अपराध नहीं किया है, तब तक किसी व्यक्ति को उसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। अगर फर्म या कंपनी मुख्य आरोपी नहीं है, तो उसका पार्टनर या गारंटर इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा।

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चेक बाउंस मामलों में लंबी प्रक्रिया।

यह मामला उस समय सामने आया जब एक फर्म द्वारा जारी किए गए चेक के बाउंस होने पर अपीलकर्ता को दोषी ठहराए जाने को चुनौती दी गई। इस चेक पर साइन किसी दूसरे पार्टनर ने किए थे, लेकिन शिकायत में फर्म को आरोपी नहीं बनाया गया था। गौरतलब है कि भारत में चेक बाउंस एक गंभीर समस्या बन चुकी है, और देश की अदालतों में 34 लाख से ज्यादा चेक बाउंस के मामले लंबित हैं।

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चेक बाउंस के नियम

नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 के तहत चेक बाउंस एक अपराध है। अगर चेक बाउंस होता है, तो व्यक्ति पर केस चलाया जा सकता है। इसके तहत 2 साल तक की सजा या चेक की राशि का दोगुना जुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है। यह तब होता है जब चेक देने वाले के अकाउंट में पर्याप्त बैलेंस नहीं होता और बैंक चेक को डिसऑनर कर देता है।

चेक बाउंस होने पर मुकदमा कब चलेगा?

चेक के बाउंस होने पर तुरंत मुकदमा नहीं चलता। सबसे पहले बैंक द्वारा चेक बाउंस का कारण लेनदार को बताया जाता है। फिर, लेनदार को 30 दिनों के अंदर देनदार को नोटिस देना होता है।

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अगर 15 दिनों के अंदर देनदार की तरफ से कोई जवाब नहीं आता है, तो लेनदार कोर्ट में शिकायत दर्ज करवा सकता है। इसके बाद, अगर रकम का भुगतान नहीं होता, तो चेक देने वाले के खिलाफ केस किया जा सकता है।

नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस एक दंडनीय अपराध है और इसके लिए 2 साल की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

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चेक बाउंस के मामले में अपील कैसे करें?

चेक बाउंस एक जमानती अपराध होता है, और इसमें 7 साल तक की सजा हो सकती है। इसका मतलब है कि केस में अंतिम फैसले तक अभियुक्त को जेल नहीं जाना पड़ता। अगर कोई अभियुक्त दोषी पाया जाता है, तो वह सजा के निलंबन के लिए ट्रायल कोर्ट से आवेदन कर सकता है।

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इसके लिए वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) का इस्तेमाल कर सकता है। वहीं, अगर दोषी के खिलाफ सजा का फैसला हो, तो वह सेशन कोर्ट में 30 दिन के अंदर अपील कर सकता है।

चेक बाउंस के मामलों में सजा होने पर भी आरोपी के पास अपील का अधिकार होता है, जिससे वह जेल जाने से बच सकता है।

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