खराब CIBIL Score वालों के लिए हाईकोर्ट का बड़ा तोहफा, बैंकों को दिए नए निर्देश – High Court On Low CIBIL Score

High Court On Low CIBIL Score : क्रेडिट इंफॉर्मेशन ब्यूरो ऑफ इंडिया लिमिटेड (CIBIL) स्कोर एक अहम वित्तीय मानक है जो ये बताता है कि किसी व्यक्ति को लोन मिलने के लिए कितनी संभावना है।

यह स्कोर 300 से 900 के बीच होता है और ये व्यक्ति के क्रेडिट हिस्ट्री, लोन चुकाने के तरीके और आमतौर पर उसके वित्तीय व्यवहार को दर्शाता है। पहले के समय में बैंक और वित्तीय संस्थान ज्यादातर इस स्कोर को देखकर लोन देते थे, और जिनका स्कोर 300 से 500 के बीच होता था, उनके लोन को अक्सर रिजेक्ट कर दिया जाता था।

केरल हाई कोर्ट का अहम फैसला।

केरल हाई कोर्ट के जज पीवी कुन्नुकृष्णन ने एक ऐतिहासिक फैसले में बैंकों के लोन देने के तरीके को चुनौती दी। खासकर उन्होंने शिक्षा लोन के मामले में ये कहा कि छात्रों को केवल कम CIBIL स्कोर की वजह से लोन से वंचित नहीं किया जा सकता। इस फैसले ने लोन देने के तरीके में बड़ा बदलाव किया, खासकर उन छात्रों के लिए जो अपनी पढ़ाई के लिए वित्तीय मदद चाहते थे।

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फैसले के पीछे की कहानी।

यह मामला एक छात्र की याचिका से शुरू हुआ, जिसमें उसने बताया कि उसे शिक्षा लोन पाने में दिक्कत आ रही है क्योंकि उसका CIBIL स्कोर खराब था। इसका कारण यह था कि उसने पहले दो लोन लिए थे, जिसमें एक लोन पर ₹16,667 का अतिरिक्त खर्च आ गया था।

इसके बाद बैंक ने उसका लोन अकाउंट चिह्नित कर दिया और उसका CIBIL स्कोर गिर गया। फिर इसी वजह से वह आगे शिक्षा लोन नहीं ले सका और उसे एक वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा।

फैसले के मुख्य बिंदु।

केरल हाई कोर्ट ने बैंकों को ये निर्देश दिए :

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  • शिक्षा लोन के लिए आवेदनों को मानवता के नजरिए से देखना।
  • छात्र की भविष्य में लोन चुकाने की क्षमता पर ध्यान देना।
  • सिर्फ CIBIL स्कोर की वजह से लोन को रिजेक्ट नहीं करना।
  • यह मानना कि छात्र राष्ट्र निर्माण में योगदान देते हैं।

CIBIL स्कोर को सुधारने के टिप्स।

अगर आप अपना CIBIL स्कोर सुधारना चाहते हैं, तो ये बातें ध्यान में रखें :

  • हमेशा समय पर लोन और क्रेडिट कार्ड के बिल चुकाएं।
  • किसी और के लिए गारंटर बनने से बचें।
  • लोन का संतुलित मिश्रण रखें।
  • अपनी क्रेडिट रिपोर्ट की नियमित जांच करें और किसी भी गलती को सुधारें।

प्रैक्टिकल असर।

यह फैसला बैंकों को यह समझाने का एक अहम मौका देता है कि सिर्फ आंकड़ों के आधार पर लोन का फैसला करना सही नहीं है। यह मानता है कि आर्थिक परेशानियां अस्थायी हो सकती हैं और लोन देते समय छात्रों की संभावनाओं को भी देखा जाना चाहिए।

Conclusion

केरल हाई कोर्ट का यह फैसला एक कदम आगे बढ़ते हुए वित्तीय संस्थाओं से उम्मीद करता है कि वे लोन के लिए आंकड़ों से ज्यादा इंसानियत को देखें। यह पारंपरिक तरीके को चुनौती देता है और यह बताता है कि वित्तीय स्कोर के साथ-साथ एक व्यक्ति की क्षमता को भी समझना जरूरी है।

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अस्वीकरण: हालांकि यह फैसला एक सकारात्मक कदम है, फिर भी लोन मिलना कई अन्य कारकों पर निर्भर करता है। उधार लेने वाले को अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभाते रहना चाहिए।

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